10. प्रकाश – परावर्तन और अपवर्तन

 प्रकाश (Light) : प्रकाश वह कारक है जिसकी सहायता से हम किसी वस्तु को देख पाते हैं। प्रकाश एक प्रकार का ऊर्जा का स्रोत है।

प्रकाश  का वेग

निर्वात में 300000 Km/s

पानी में   225000Km/s

कांच में 200000 Km/s हैं।


प्रकाश की किरण (Ray of light)

प्रकाश एक सीधी रेखा में चलता है। प्रकाश के इस पथ को ‘प्रकाश की किरण’ कहा जाता  हैं।

विभिन्न प्रकार की छाया का बननासूर्य-ग्रहण, चन्द्र-ग्रहणपरावर्तनअपवर्तनसूची-छिद्र कैमरा (Pin hole camera) से उलटे प्रतिबिंब का बनना आदि प्रकाश के सीधी रेखा में चलने के कारण होता है।

प्रकाश की किरणें सीधी रेखा में चलती हैं। जब एक अपारदर्शी वस्तु प्रकाश की किरणों के रास्ते में  जाती है तो यह छाया बनाती है। प्रकाश की किरणों के द्वारा छाया बनाने की प्रक्रिया हमें यह बतलाता है कि प्रकाश सीधी रेखा में गमन करती है अर्थात चलती है।

किरण आरेख: किरणों के  पथ को दर्शाने वाले चित्र को किरण आरेख कहते हैं।

किरण पुंज: किरणों के  समूह को किरण पुंज कहते हैं।

प्रकाश के  किरण पुंजों के तीन प्रकार हैं।

(a)अपसारी किरण पुंज : जब  प्रकाश की किरणें एक बिंदु स्रोत से निकलकर , आगे कि ओर फैलती जाती हैं तो इस प्रकार के किरण पुंज को अपसारी किरण पुंज कहते हैं।

(b)समांतर किरण पुंज : जब प्रकाश कि किरणें एक दूसरे के समांतर चलती हैं तो इस प्रकार के किरण पुंज को समांतर किरण पुंज कहते हैं।

(C)अभिसारी किरण पुंज : जब प्रकाश कि किरणें  विभिन्न दिशाओं से आकर एक बिन्दु पर एकत्रित होती हैं तो इस प्रकार के किरण पुंज को अभिसारी किरण पुंज कहते हैं।



 

 


प्रकाश का परावर्तन (Reflection of light)

जब प्रकाश किरण किसी चिकने पृष्ठ से टकराकर वापस लौट आती हैतो इस घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।

एक उच्च कोटि का पॉलिश किया हुआ चमकीला वस्तु , उस पर पड़ने वाली प्रकाश की अधिकांश किरणों को परावर्तित कर देता है।

जैसे : दर्पण या आईना (Mirror), जिसकी सतह एक चमकीले पदार्थ से पॉलिश की रहती है जो उसपर पड़ने वाली प्रकाश की अधिकांश किरणों को परावर्तित कर देती है।

चाँदी प्रकाश का सबसे अच्छा परावर्तक है।

प्रकाश का प्रवर्तन दो  प्रकार का होता  है।

(1) नियमित प्रकाश का परावर्तन 

(2) विसरित प्रकाश का परावर्तन 





Regular reflection occurs at the surface of a plane surface like a plane mirror. Reflected rays after regular reflection are parallel.

Diffused reflection occurs at the surface of a rough surface like cardboard. Reflected rays after regular reflection are not parallel.

Note: Laws of reflection are valid in both the cases.

DEFINITION

Regular and Irregular Reflection

image

Regular Reflection: 

1. Reflection from a polished and plane  surface is called regular reflection.

2.  In regular reflection parallel rays remain parallel after reflection.

Irregular Reflection:

1. Reflection from a rough surface is called diffuse reflection.

2. Parallel rays do not remain parallel after reflection


प्रकाश के स्रोत:-

1. निर्माण के आधार पर प्रकाश स्रोत दो प्रकार के होते हैं:-

 (a) प्राकृतिक प्रकाश के स्रोत: 

(b) मानव निर्मित प्रकाश के स्रोत

2. प्रकाश उत्सर्जन करने के आधार पर  पदार्थों ( पिंडो) को दो भागों में बांट दिया गया है।

 (a) प्रदिप्त पिंड : वैसे पिंड जो प्रकाश का स्वयं उत्सर्जन करते हैं प्रदीप्त पिंड कहलाते हैं। 

जैसे: सूर्य, जुगनू, तारे, जलता हुआ बल्ब, मोमबत्ती आदि।

(b) अदीप्त पिण्डवैसे पिंड जो प्रकाश का स्वयं उत्सर्जन नहीं करते हैं अदिप्त पिंड कहलाते हैं।

जैसे: पुस्तक, कलम, ईट, पत्थर आदि।

3.प्रकाश के गमन करने के आधार पर

 पारदर्शी, अपारदर्शी और पारभासी पदार्थ

(A) पारदर्शी पदार्थ: - वैसे पदार्थ जिनके आरपार साफ-साफ देखा जा सकता है उन्हें पारदर्शी पदार्थ कहते हैं अर्थात जिन से होकर प्रकाश आसानी से आ जा सकता है उसे पारदर्शी पदार्थ कहते हैं।

(B) अपारदर्शी पदार्थ:- वैसे पदार्थ जिनके आर पार बिल्कुल देखा नहीं जा सकता है यानि जिन से होकर प्रकाश बिल्कुल आ जा नहीं सकता है उसे अपारदर्शी पदार्थ कहते हैं जैसे : पत्थर, दीवार, लकड़ी इत्यादि


(C) पारभाषी पदार्थ:- वैसे पदार्थ जिनके  आर - पार आंशिक रूप से देखा जा सकता है यानी धुंधला दिखाई पड़ता है उसे पारभाषी पदार्थ कहते हैं जैसे तेल लगा कागज, घिसा हुआ कांच, गंदा पानी इत्यादि

प्रकाश का परावर्तन (Reflection of light)

जब प्रकाश किरण किसी चिकने पृष्ठ से टकराकर वापस लौट आती हैतो इस घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।

हम किसी वस्तु को कैसे देख पाते है ?

जब प्रकाश की किरणें किसी वस्तु से परावर्तित होकर हमारी आँखों पर पड़ती हैतो हम उस वस्तु को देखने में सक्षम हो पाते हैं। हम अंधेरे में रखी वस्तुओं को नहीं देख पाते हैं क्योंकि अंधेरे के कारण कोई भी प्रकाश की किरण उक्त वस्तु से परावर्तित होकर हमारी आंखों पर नहीं पड़ती है।



 






प्रकाश के परावर्तन के नियम (Laws of Reflection)

प्रथम नियम:  आपतित किरणपरावर्तित किरण और अभिलम्ब तीनों एक ही तल में होते हैं।

द्वितीयक नियम:  आपतन कोण का मान हमेशा परावर्तन कोण के बराबर होता है।

                               i = r

प्रकाश के परावर्तन से संबंधित शब्दावली

1.आपतित किरण (Incident rays):  किसी दर्पण के परावर्तक सतह पर पड़ने वाली प्रकाश किरण को आपतित किरण कहा जाता है।

2. आपतन बिन्दु (Incident Point): किसी दर्पण के परावर्तक सतह वह बिन्दु जिस पर आपतित किरण पड़ती हैउसे आपतन बिन्दु कहा जाता है।

3.परावर्तित किरण (Reflective rays):  परावर्तन के वापस लौटने वाली प्रकाश किरण को परावर्तित किरण कहते हैं।

4. अभिलम्ब (Normal) : आपतन बिन्दु पर दर्पण के परावर्तक सतह के लंबवत समकोण बनती रेखा को अभिलम्ब कहते हैं।

5. आपतन कोण (Incident angle): आपतित किरण तथा अभिलम्ब बीच बना कोण आपतन कोण कहलाता है।
 इसे कहते है।

6. परावर्तन कोण (Reflective angle): परावर्तित किरण तथा अभिलम्ब बीच बना कोण परावर्तन कोण कहलाता है।
इसे कहते है।

पार्श्व व्युत्क्रम या पार्श्व परावर्तन (Lateral Inverse)

–  जब हम एक समतल दर्पण के सामने खड़े होते हैं तो दर्पण में बने प्रतिबिंब में हमारा दाहिना हिस्सा बायी ओर तथा बायाँ हिस्सा दायी ओर दिखाई देता इस परिघटना को पार्श्व व्युत्क्रम या पार्श्व परावर्तन कहते है।

 p का प्रतिबिंब q बनता है।

 दर्पण या आईना (Mirror): कोई भी सतह जो प्रकाश का परावर्तन करता है दर्पण की तरह व्यवहार करता है

चाँदी प्रकाश का सबसे अच्छा परावर्तक है।

समतल दर्पण

ऐसा दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ (Reflective Surface) समतल होता हैसमतल दर्पण कहलाता है।

समतल दर्पण बनाने के काँच की शीट के पीछे तरफ चाँदी या पारे की पतली परत लगाई जाती है। चाँदी या पारे की इस परत को क्षय से बचाने के लिए पेंट से सुरक्षित किया जाता है।

समतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब का बनना

समतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब की निम्न विशेषताए होती है। –

1.     प्रतिबिंब दर्पण के पीछे की ओर बनता है। प्रतिबिंब दर्पण से पीछे उतनी ही दूरी पर बनता हैजितना दर्पण के आगे की ओर वस्तु होती है।

2.     प्रतिबिंब आभासी (Virtual) और सीधा होता है।

3.     प्रतिबिंब का आकार वस्तु के आकार के बराबर होता है।

4.     किसी वस्तु का समतल दर्पण में पूर्ण प्रतिबिंब देखने के लिए दर्पण की लम्बाई वस्तु की लम्बाई की कम से कम आधी होनी चाहिए।

5.     यदि दो समतल दर्पण एक दुसरे के θ कोण पर झुके हो तो उनके मध्य में रखी वस्तु के कुल प्रतिबिंब की संख्या होती है।
उदाहरण के लिए यदि दो समतल दर्पण एक दुसरे से 90º  पर हो तो उनके बीच रखी वस्तु के 3 प्रतिबिंब बनेंगे।

समतल दर्पण का उपयोग

1.     घरों में प्रतिबिंब देखने के लिए 

2.     परिदर्शी या पेरीस्कोप बनाने में।

3.     बहुरूपदर्शी या कलेइडोस्कोप बनाने में।

 गोलीय दर्पण (Spherical mirror):

ऐसा दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ  (Reflective Surface) वक्रित (गोलीययानी मुड़ा हुआ होता है। गोलीय दर्पण कहलाता।

गोलीय दर्पण के प्रकार :

(i) अवतल दर्पण (Concave mirror) : इसका परावर्तक पृष्ठ  (Reflective Surface) अन्दर की ओर अर्थात गोले के केंद्र की ओर वक्रित  होता है। इसको याद करने रखने के लिए  ध्यान रखे  से अवतल  से अंदर की ओर मुड़ा हुआ।

 अवतल दर्पण के उपयोग :

(i)  दंत विशेषज्ञ द्वारा मरीजों के दाँतों का बड़ा प्रतिबिंब देखने में।

(ii) शेविंग दर्पणों ( shaving mirrors) में 

(iii) सौर भट्टियों में सूर्य के प्रकाश को में।

(iv) टॉर्चसर्चलाइट तथा वाहनों के अग्रदीपों (headlights) में।

(ii) उत्तल दर्पण (convex mirror) इसका परावर्तक पृष्ठ  (Reflective Surface)बाहर की तरफ उभरा हुआ होता है। इसको याद रखने के लिए  से उभरा  से उत्तल।

 उत्तल दर्पण का उपयोग :

(i) वाहनों के पीछे का दृश्य (wing) देखने वाले दर्पणों में।
(ii) 
वाहन के पार्श्व (side) में।
(iii) 
टेलिस्कोप में 
(iv) 
स्ट्रीट लाइट में रिफ्लेक्टर के रूप में 

गोलीय दर्पण से संबंधित शब्दावली

(i) वक्रता केंद्र (Center of Curvature): गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ  (Reflective Surface)जिस गोले का  भाग होता है। उसका केंद्र गोलीय दर्पण का वक्रता केंद्र कहलाता है। इसे C से दर्शाते है।  

(ii) ध्रुव (Pole): गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ  (Reflective Surface)के मध्य बिंदु को दर्पण का ध्रुव कहते है।  इसे P से दर्शाते है।

(iii) वक्रता त्रिज्या (The radius of Curvature): गोलीय दर्पण के ध्रुव (P) एवं वक्रता केंद्र (C) के बीच की दुरी को वक्रता त्रिज्या कहते है।

 (iv) मुख्य अक्ष (Principal axis): गोलीय दर्पण के ध्रुव(P) एवं वक्रता केंद्र(C) से होकर गुजरने वाली सीधी रेखा को दर्पण का मुख्य अक्ष कहा जाता है।

(v) मुख्य फोकस (Principal Focus): अवतल दर्पण के मुख्य अक्ष के समांतर आपतित किरणें परावर्तन के बाद मुख्य अक्ष के जिस बिंदु पर प्रतिच्छेद करती है। उसे अवतल दर्पण का मुख्य फोकस कहते है।

उत्तल  दर्पण के मुख्य अक्ष के समांतर आपतित किरणें परावर्तन के बाद मुख्य अक्ष जिस बिंदु से अपसरित होती प्रतीत होती है। उसे उत्तल  दर्पण का मुख्य फोकस कहते है। इसे F से  दर्शाते है।

(vi) फोकस दुरी (Focal Length): दर्पण के ध्रुव (P) एवं मुख्य फोकस (F) के बीच की दुरी को फोकस दुरी कहते है। इसे f  से दर्शाते है। फोकस दुरी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है।

R=2 f

(vii) द्वारक (Aperatute): गोलीय दर्पण की वृत्ताकार सीमा रेखा का व्यास दर्पण का द्वारक कहलाता है।

उतल लेंस और अवतल लेंस में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तल लेंस

अवतल लेंस

1. बीच में से मोटा तथा किनारों से पतला होता है।

1. बीच में पतला तथा किनारों से मोटा होता है।

अक्षर बड़े आकार के दिखाई देते हैं।

अक्षर छोटे आकार के दिखाई देते हैं

3. प्रकाश की किरणों को एक बिंदु पर केंद्रित करता है।

3. प्रकाश-किरण पुंज को बिखेर देता है

4. वस्तु का प्रतिबिंब वास्तविकआभासी तथा उल्टा बनता है।

4. वस्तु का प्रतिबिंब आभासी तथा सीधा बनता है।

5. लेंस को बायीं तरफ हिलाएँ तो प्रतिबिंब दायीं तरफ गति करता है।

5. लेंस को बायीं तरफ हिलाएँ तो प्रतिबिंब भी बायीं तरफ हटेगा।

6. इसकी फोकस दूरी धनात्मक होती होती है।

6. इसकी फोकस दूरी ऋणात्मक होती हैं |


2 . पैरिस्कोप किसे कहते हैं  इसके क्या उपयोग हैं ?

उत्तर  पैरिस्कोप एक यंत्र है जिसके द्वारा हम अपने में छिपी हुई वस्तुओं को देख सकते हैं। सैनिक खाइयों में छिपकर मैदानोंपहाड़ों को देख सकते हैं और पनडुब्बियों में बैठे सैनिकोंसमुद्र तल का पर्यवेक्षण कर सकते हैं। किसी धुंध वाले दिन अवरक्त फोटोग्राफी भी इसकी सहायता से की जा सकती है। पैरिस्कोप समतल दर्पणों की सहायता से बनाए जा सकते हैं जो प्रकाश के परावर्तन-सिद्धांत पर कार्य करते हैं। उच्च कोटि के पैरिस्कोप में प्रिज्मों का प्रयोग किया जाता है।

वास्तविक प्रतिबिंब (Real Image) - किसी बिंदु - स्त्रोत से आती प्रकाश की किरणे दर्पण से परावर्तन के बाद जिस बिंदु पर वास्तव में मिलती है, उसे उस बिंदु- स्त्रोत का वास्तविक प्रतिबिंब कहते है। वास्तविक प्रतिबिंब वस्तु की अपेक्षा हमेशा उल्टा होता है।


2. आभासी प्रतिबिंब (Virtual Image) - किसी बिंदु - स्त्रोत से आती प्रकाश की किरणे परावर्तन क बाद जिस बिंदु से आती हुई प्रतीत होती है। उसे उस बिंदु- स्त्रोत का आभासी प्रतिबिंब कहते है। आभासी प्रतिबिंब वस्तु की अपेक्षा हमेशा सीधा होता है। नोट- वास्तविक प्रतिबिंब को पर्दे पर प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन आभासी प्रतिबिंब को पर्दे पर नहीं प्राप्त किया जा सकता है।

वास्तविक तथा आभासी प्रतिबिंब में अंतर क्या है ?

वास्तविक प्रतिबिंब

आभासी प्रतिबिंब

1. वास्तविक प्रतिबिंब को पर्दे पर प्राप्त किया जा सकता है |

1.आभासी प्रतिबिंब को पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता है |

2.वास्तविक प्रतिबिंब सदैव उल्टे होते हैं |

2. आभासी प्रतिबिंब सदैव सीधे होते हैं |

3. वास्तविक प्रतिबिंब दर्पण के आगे बनता है |

3.आभासी प्रतिबिंब दर्पण के पीछे बनता है |

समतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब का बनना

समतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब की निम्न विशेषताए होती है। –

1.     प्रतिबिंब दर्पण के पीछे की ओर बनता है। प्रतिबिंब दर्पण से पीछे उतनी ही दूरी पर बनता हैजितना दर्पण के आगे की ओर वस्तु होती है।

2.     प्रतिबिंब आभासी (Virtual) और सीधा होता है।

3.     प्रतिबिंब का आकार वस्तु के आकार के बराबर होता है।

4.     किसी वस्तु का समतल दर्पण में पूर्ण प्रतिबिंब देखने के लिए दर्पण की लम्बाई वस्तु की लम्बाई की कम से कम आधी होनी चाहिए।

5.     यदि दो समतल दर्पण एक दुसरे के θ कोण पर झुके हो तो उनके मध्य में रखी वस्तु के कुल प्रतिबिंब की संख्या होती है।
उदाहरण के लिए यदि दो समतल दर्पण एक दुसरे से 90º  पर हो तो उनके बीच रखी वस्तु के 3 प्रतिबिंब बनेंगे।

समतल दर्पण का उपयोग

1.     घरों में प्रतिबिंब देखने के लिए 

2.     परिदर्शी या पेरीस्कोप बनाने में।

3.     बहुरूपदर्शी या कलेइडोस्कोप बनाने में।

 अवतल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब  का बनना

अवतल दर्पण में निम्न प्रकार का प्रतिबिंब बनाता है। 

1. जब वस्तु अनंत (infinity) पर होतो वस्तु का प्रतिबिंब मुख्य फोकस F पर बनता है।प्रतिबिंब वास्तविक (Real) एवं उल्टा होता है।प्रतिबिंब अत्यधिक छोटा बिंदु  के आकार का बनता है।

 

 

2.  वस्तु अनन्त और वक्रता केंद्र C हो के बीच होतो वस्तु का प्रतिबिंब मुख्य फोकस F तथा वक्रता केंद्र C के बीच बनता है।प्रतिबिंब वास्तविक (Real) एवं उल्टा होता है।प्रतिबिंब छोटा बनता है।

 

3. जब वस्तु वक्रता केंद्र C पर हो,तो वस्तु का प्रतिबिंब वक्रता केंद्र C पर बनता है।प्रतिबिंब वास्तविक (Real) एवं उल्टा होता है।प्रतिबिंब बिंब के समान आकार का बनता है।

 

4. जब वस्तु वक्रता केंद्र C एवं मुख्य फोकस F के बीच होतो वस्तु का प्रतिबिंब C से परे बनता है।प्रतिबिंब वास्तविक (Real) एवं उल्टा होता है।प्रतिबिंब विवर्धित यानी बड़ा बनता है।

 

5 . जब वस्तु मुख्य फोकस (F) पर होतो वस्तु का ,  प्रतिबिंब अनंत (infinity) पर बनता है।प्रतिबिंब वास्तविक (Real) एवं उल्टा होता है।प्रतिबिंब अत्यधिक विवर्धित यानी बहुत बड़ा बनता है।

 

 6. जब वस्तु ध्रुव (P) तथा मुख्य फोकस (F) के बीच होतो वस्तु का  प्रतिबिंब दर्पण के पीछे बनता है।प्रतिबिंब आभासी (Virtual) एवं सीधा होता है।प्रतिबिंब वस्तु से बड़ा बनता है।

अवतल दर्पण का उपयोग:
1.  
हजामत बनाने के लिये दर्पण के रूप में किया जाता है। अवतल दर्पण के उपयोग से चेहरे का बड़ा प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बनता हैतथा हजामत बनाने में सुविधा होती है।

2. अवतल दर्पण का उपयोग दाँतों के डॉक्टर द्वारा रोगी के दाँतों का बड़ा प्रतिबिम्ब देखने के लिये किया जाता है।

3. बड़े अवतल दर्पण का उपयोग सौर भट्ठी में किया जाता है। बड़े अवतल दर्पण का द्वारक भी बड़ा होता हैजिसके कारण यह सूर्य के किरणों की बड़ी मात्रा को एक जगह केन्द्रित कर उष्मा की बड़ी मात्रा देता है।

उत्तल दर्पण द्वारा प्रतिबिंब  का बनना

1. जब वस्तु अनंत (infinity) पर हो,तो वस्तु का प्रतिबिंब मुख्य फोकस F पर बनता है।प्रतिबिंब आभासी (Virtual) एवं सीधा होता है।प्रतिबिंब अत्यधिक छोटा बिंदु  के आकार का बनता है।

 2. जब वस्तु अनंत (infinity) तथा ध्रुव (P) के बीच होतो वस्तु का प्रतिबिंब ध्रुव (P) तथा मुख्य फोकस (F) के बीच बनता है।प्रतिबिंब आभासी (Virtual) एवं सीधा होता है।प्रतिबिंब वस्तु से छोटा बनता है।

 उत्तल दर्पण का उपयोग :

(i) वाहनों के पीछे का दृश्य (wing) देखने वाले दर्पणों में।
(ii) 
वाहन के पार्श्व (side) में।
(iii) 
टेलिस्कोप में 
(iv) 
स्ट्रीट लाइट में रिफ्लेक्टर के रूप में 

उत्तल दर्पण के उपयोग (Use of Convex Mirror) WITH REASON

(a) उत्तल दर्पण का उपयोग वाहनों में पश्च दृश्य दर्पणों (Rear view mirror) के रूप में किया जाता है। पश्च दृश्य दर्पण वाहनों के पार्श्व (Side) में लगे होते हैंजिसमें वाहन चालक पीछे आने वाले वाहनों को देख सकता है। उत्तल दर्पण के बाहर की ओर वक्रित होने के कारण इसका दृष्टि क्षेत्र बड़ा होता है तथा ये सीधा तथा सापेक्ष रूप से छोटा प्रतिबिम्ब बनाते हैंजिसके कारण वाहन चालक उनके पीछे दूर तक आते वाहनों को आसानी से देख पाते हैंजिससे वाहन चलान में सुविधा होती है।

(b) उत्तल दर्पण का उपयोग तीक्ष्ण मोड़ पर दूसरी तरफ से आने वाले वाहनों को देखने में होता है। दूसरी तरफ से आने वाले वाहनों को देख लेने के बाद विपरीत दिशा से आने वाले वाहन चालक सतर्क हो जाते हैं तथा वाहन सुरक्षित रूप से चला पाते हैं।

 दर्पण सूत्र क्या  क्या हैं?

    1/f=1/v+1/u

    जहां f= दर्पण की फोकस दूरी,

             u= वस्तु दूरी,

            v= प्रतिबिंब दूरी हैं।

दर्पण सूत्र वह व्यंजक है जिसकी सहायता से हम किसी गोलीय दर्पण से बने किसी वस्तु के प्रतिबिंब दूरी वस्तु दूरी एवं फोकस दूरी के बीच संबंध स्थापित करते हैं।


गोलीय दर्पणों द्वारा परावर्तन के लिए चिह्न परिपाटी (Sign Convention):  

  • गोलीय दर्पण के ध्रुव (P) को मूल बिंदु मानते है और दर्पण की सभी दूरियां ध्रुव (P) से मापी जाती हैं 
  • बिंब को सदैव दर्पण के बाईं ओर रखा जाता है।
  • मूल बिंदु के दाईं ओर की दूरियाँ + x-अक्ष के अनुदिश धनात्मक  मापी जाती है या आपतित किरण के दिशा में मापी गयी दुरी धनात्मक होती है। 
  • मूल बिंदु के बाईं ओर दूरियाँ – x-अक्ष के अनुदिश ऋणात्मक मापी जाती है।आपतित किरण के  विपरीत  दिशा में मापी गयी दुरी ऋणात्मक होती है। 
  • दर्पण के मुख्य अक्ष के ऊपर के ओर की सभी दूरियाँ धनात्मक (+) ली जाती है।
  • दर्पण के मुख्य अक्ष के नीचे की ओर की सभी दूरियाँ ऋणात्मक (-) ली जाती है।
    दर्पण सूत्र (Mirror Formulas ):

बिंब दुरी / वस्तु दुरी :

 गोलीय दर्पण के सामने रखी वस्तु तथा इसके ध्रुव (P) के बीच की दूरी को बिंब दूरी वस्तु दुरी कहते है। इसे u से दर्शाते हैं 

प्रतिबिंब दुरी:

गोलीय दर्पण के ध्रुव (P) और प्रतिबिंब के बीच की दूरी को प्रतिबिंब दूरी (v) कहते हैं  इसे v से दर्शाते हैं 
आवर्धन या आवर्धन (Magnification):

आवर्धन वह संख्यात्मक मान है, जिससे यह पता चलता है कि कोई प्रतिबिम्ब कहाँ एवं वास्तु से  कितना गुना बड़ा बना हैं। 

प्रतिबिंब की ऊँचाई तथा बिंब की ऊँचाई  का अनुपात है। आवर्धन कहलाता है। इसे m से दर्शाते हैं।

           m=h'/h

प्रतिबिंब दूरी तथा वस्तु दूरी के अनुपात के ऋणात्मक मान को आवर्धन कहते हैं।

                    m= -v/u

                    h'/h=-v/u

1. प्रतिबिंब के लिए प्रतिबिंब ऊँचाई (h’) धनात्मक (+) होती है। और उल्टे प्रतिबिंब के लिए प्रतिबिंब कि ऊँचाई (h’) ऋणात्मक (-) होती है। 

2. आवर्धन का मान धनात्मक मान होता है। तो प्रतिबिंब आभासी (Virtual) और सीधा होता है। और यदि  आवर्धन का मान ऋणात्मक मान  होता है। तो प्रतिबिंब वास्तविक (Real) और उल्टा  होता है।

3. बिंब दूरी (u) ऋणात्मक (-) होती है।

4.अवतल दर्पण की फोकस दुरी (f) का मान ऋणात्मक (-) होता है। जबकि उत्तल दर्पण की फोकस दूरी का मान धनात्मक (+) होता है।

प्रतिबिंब  दूरी (v) ऋणात्मक (-) होती  हैं यदि प्रतिबिंब वास्तविक (Real) तथा उल्टा बनता है। जबकि आभासी (Virtual) और सीधा प्रतिबिंब  के लिए प्रतिबिंब  दूरी  धनात्मक (+) होती है।

Note:-1. यदि आवर्धन का मान धनात्मक हो तो वस्तु का प्रतिबिंब सीधा काल्पनिक ( आभासी) बनता है।

2. यदि आवर्धन का मान ऋणात्मक हो, तो प्रतिबिंब वास्तविक एवं पुल्टा बनता है।

3.यदि m<1, यानि आवर्धन का मान 1 से कम हो तो प्रतिबिंब की ऊंचाई वस्तु के ऊंचाई से छोटा होता है।

4 . यदि m=1, यानि आवर्धन का मान 1 हो तो प्रतिबिंब कि ऊंचाई, वस्तु ऊंचाई के बराबर होती है।

5. यदि m>1 यानि आवर्धन का मान 1 से अधिक हो तो प्रतिबिंब कि  ऊंचाई वस्तु के ऊंचाई से बड़ा होता है।

1. समतल दर्पण  द्वारा उत्पन्न आर्वधन +1 हैइसका क्या अर्थ है ?

उत्तर  एक समतल दर्पण द्वारा उत्पन्न आर्वधन +1 होने का अर्थ है कि समतल दर्पण के द्वारा जिस वस्तु का प्रतिबिम्ब बन रहा हैउस वस्तु का साइज दर्पण (समतलद्वारा बनाए गए प्रतिबिम्ब के साइज के बराबर है। धनात्मक चिह्न यह दर्शाता है कि प्रतिबिम्ब सीधा तथा आभासी है।


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